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सोनीधापा खण्डेलवाल बालिका इण्टर कालेज, मऊ का संक्षिप्त इतिहास

‘’महू’’ नाम का एक जंगल था। इस जंगल में रहने वाले कबीले का सरदार एक नट था, जिस का नाम ‘'नट भज्जन" था। यह नट इस जंगल के वासियों पर बहुत ही जुल्म व अत्याचार करता था। सभी लोग इस नट की प्रताणना से तंग आ गये थे, जिस कारण सभी लोग इस जंगल के एक सूफी मलिक ताहिर बाबा के पास जा कर नट के आतंक से छुटकारा दिलाने की फरियाद किये। उक्त बाबा शहर के मेन रोड रोजा पर स्थित अपने हुजरा (कुटिया) में निवास करते थे। बाबा की मज़ार मकबरा के रूप में वहां पर मौजूद है, जहां आज भी हजारों लोग अपनी अपनी मन्नते मानने आते हैं। जंगल के वासियों की फरियाद पर नट के आतंक से निजात दिलाने के लिए समझाने बुझाने से बात नहीं बनी तो अन्त में मलिक ताहिर बाबा और नट भज्जन में जंग हुई और जंग में नट भजन परास्त हुआ | ये जमाना मुगल सम्राट ''औरंगजब'' का था। उस समय यह इलाका जीत कर औरंगजेब ने अपनी सगी बहन ''जहाँआरा'' की सुपुर्दगी में दे दिया और नट भज्जन से किये गये वायदे के अनुसार इस इलाका का नाम महु नाट भजन रखा गया। इस इलाका में जहांआरा ने पास अंतराफ के बुनकरों को ले आकर बसाया और उनको बुनाई के लिए धागे व चर्खी की व्यवस्था किया। जिससे यहां बसने वाले बुनकर चर्खी फिराकर नदी में मछली फसाने वाली जाल की बुनाई करने लगे। इसी बुनाई के काम में महारत बढ़ते-बढ़ते यहां पर साड़ियों की बुनाई की जाने लगी। देखते-देखते यहां का बुनकर साड़ियों का कारोबार एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में भी जाकर करने लगा। जिससे औद्योगिक जगत में इस इलाके का नाम पहली बार "महू नाट भज्जन'' से बदल कर ‘’मऊ नाट भंजन’’ हो गया , जो कालान्तर में ‘’मऊनाथ भजन ‘’ में परिवर्तन हो गया है | देश की आजादी के समय तक यहां के कपड़े का कारोबार काफी विस्तार लेकर मऊनाथ भंजन का नाम रौशन कर चुका था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व० पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी ने यहां के कपड़े के व्यवसाय से प्रभावित होकर मऊनाथ भंजन को "हिन्दुस्तान का मैनचिस्टर" कहा था।

जब देश की आजादी की लड़ाई में यहां के स्वतन्त्रता सेनानियों की अगुवाई में इस इलाके की जनता भी पूरे देश वासियों के कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही थी, तब उसी युग में आज से लगभग एक सौ वर्ष पूर्व सोनीधापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज निजामुद्दीन पूरा मऊनाथ भंजन जनपद मऊ के पूर्व अध्यक्ष स्व० राज कुमार खण्डेलवाल जी एवं पूर्व प्रबन्धक स्व० विजय कुमार खण्डेलवाल जी के पूर्वज देश के राजस्थान प्रान्त के सीकर जनपद में स्थित ग्राम नवल गढ़ (झाझड़) से इस व्यवसायिक मण्डी क़स्बा मऊनाथ भंजन से अपना व्यवसाय करने के मुख्य उद्देश्य से इस उद्योग नगरी में पधारे और तभी से वंश दर वंश इसी शहर में आबाद रहते चले आ रहे हैं।

राय बहादुर सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी जो सोनीघापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज के संस्थापक श्री गिरधर गोपाल खण्डेलवाल एवं श्री काशी प्रसाद खण्डेलवाल के पिताश्री तथा पूर्व अध्यक्ष स्व० राजकुमार खण्डेलवाल व पूर्व प्रबन्धक स्व० विजय कुमार खण्डेलवाल जी के सगे दादाश्री थे, अंग्रेजी साम्राज्य के जमाने में आनरेरी मजिस्ट्रेट थे। यद्यपि सेठसागर मल जी उस जमाने के बहुत ही सम्मानित समाज सेवी व काफी धनी व्यक्तित्व के मालिक थे तथा हमेशा से जनता के दुखः दर्द में वह इस अशिक्षित क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में अपने तन मन व धन से सहयोग करते रहे। परन्तु उनका वंश क्रमानुगत क्रम में अग्रसारित होने के लिए ईश्वर ने उन्हें कोई पुत्र/पुत्री रूपी सन्तान नहीं दिया था जिसकी वजह से उन्हें स्वयं एक विशेष चिन्ता सताए जा रही थी। सन्तान प्राप्ति के उद्देश्य से सेठ जी ने सतत पूजा पाठ किया और कर्म काण्ड करवाया अपितु राय साहब बाहदुर ने कभी भी किसी से अपनी पीड़ा भरी चिन्ता को उजागर नहीं किया। उसी युग में काशी नगरी के पावन तट से श्री स्वामी पूर्णानन्द जी का इस कस्बा में आगमन हुआ। स्वामी जी के पास प्रायः श्रद्धालू जाया करते और अपनी पीड़ाओं से मुक्ति पाया करते थे। सेठ सागर मल जी भी उन्हीं श्रद्धालुओं में से स्वामी जी के एक भक्त थे। धीरे-धीरे स्वामी जी ने प्रिय श्रद्धालू सेठ राय बहादुर साहब की चिन्ता को समझ लिया। स्वामी जी ने सेठ जी की दुखः भरी चिन्ता के कारण का निराकरण करने का उपाय बताया। स्वामी जी ने कहा कि सेठ जी आप को पुत्र/पुत्री रूपी संतान प्राप्ति की चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

आप नगर में समाज सेवा की भावना से स्वयं की कमाई से क्रय की हुई भूमि के ऐसे स्थान पर बालक व बालिकाओं की शिक्षा हेतु स्कूल की स्थापना करें, जो शहर के कोलाहल पूर्ण वातावरण से दूर हो एवं शान्त व सूरमय स्थान पर हो। स्वामी जी ने ही तमसा नदी (टॉस नदी) के पुनीत तट का चयन किया। उसी पुनीत तट पर सेठ राय बहादुर सागरमल खण्डेलवाल जी के नाम से उनकी निजी स्वामित्व की पर्याप्त भूमि पर ही स्वामी जी की आज्ञा का पालन करते हुए स्कूल के भवन के लिए तत्काल निर्माण कार्य की प्रक्रिया का श्रीगणेश स्वामी जी के मंत्रोपचारण उपरान्त स्वामी जी के ही कर कमलों द्वारा शिलान्यास कराया गया। कुछ अर्सा व्यतीत होने पर पता चला कि स्कूल के भवन की बुनियाद जिस दिन रखी गयी, उसी रात को सेठ जी की पत्नी स्व0 श्रीमती सोनी खण्डेलवाल जी के पेट में उनके बड़े सुपुत्र श्री गिरधर गोपाल खण्डेलवाल जी का आगमन हुआ। जिसके विषय में स्वामी जी ने पूर्व में ही भविष्यवाणी कर दिया था। श्री गिरधर गोपाल जीके जन्म के कुछ अर्सा पश्चात श्री काशी प्रसाद खण्डेलवाल जी का जन्म हुआ। इस तरह से सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी को स्वामी जी के आशीर्वाद से श्री गिरधर गोपाल व श्री काशी प्रसाद के रूप में दो सन्तान प्राप्त हुई, जिन में से एक सन्तान श्री गिरधर गोपाल को सेठ जी के सगे भाई श्री भवानी प्रसाद खण्डेलवाल ने गोद ले लिया क्योंकि श्री भवानी प्रसाद जी को कोई सन्तान नहीं थी। भवानी प्रसाद जी की पत्नी श्रीमती धापा खण्डेलवाल जी ने श्री गिरधर गोपाल जी का लालन पालन अपनी सन्तान के रूप में माता की हैसियत से अपने जीवन काल तक किया। पुत्र प्राप्ति के समय से ही सेठ सागरमल जी स्कूल के निर्माण व सर्वांगीण विकास मे अपना बहुमूल्य समय व अपार धन व पूंजी सम्पत्ती स्कूल को अर्पित किया। स्वामी जी ने राय बहादुर सेठ सागरमल खण्डेलवाल साहब को "विद्या मन्दिर नाम से एक ट्रस्ट स्थापित करने का सुझाव दिया, जिसके सेठ जी स्वयं आजीवन अध्यक्ष व ट्रस्टी हो तथा सेठ सागरमल के बाद सेठ सागरमल के वंशज आजीवन ट्रस्टी एवं उन्हीं आजीवन ट्रस्टी में से ही ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष हों। स्वामी जी के इस सुझाव को सेठ सागरमल जी ने अपने हृदय से स्वीकार कर "विद्या मन्दिर" नाम से ट्रस्ट की स्थापना किया और सेठ जी ने इस ट्रस्ट का नियमानुसार पंजीकरण कराया। इसी “विद्या मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री सेठ सागरमल जी ने स्वामी जी के सुझाव पर अपनी अध्यक्षता में ट्रस्ट के लिए स्कूल की इमारत का निर्माण मुकम्मल हो जाने के बाद स्कूल का नाम "विद्या मन्दिर वर्नाक्यूलर स्कूल" रखा और स्कूल में हिन्दी के साथ अंग्रेजी की भी शिक्षा की व्यवस्था किया। इस प्रकार "विद्या मन्दिर ट्रस्ट द्वारा खोले गये इस स्कूल में हिन्दी व अंग्रेजी की शिक्षा दी जाने लगी। "विद्या मन्दिर ट्रस्ट" ने अपने विद्या मन्दिर वर्नाक्यूलर स्कूल में शिक्षण हेतु पूर्ण बन्धकीय संचालन के लिए प्रबन्ध समिति का गठन किया, जिसके प्रबन्धक भी सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी ही रहे। इस प्रकार स्कूल की इमारत व सम्बन्धित भूमि के मालिक काबिज व स्वामी तथा स्कूल के संस्थापक सेठ राय बहादुर सागरमल खण्डेलवाल जी के प्रबन्धकत्व में रते सन् 1922 ई० के जुलाई महीने से विधिवत रूप से विद्या मन्दिर वर्नाक्यूलर स्कूल में अध्यापन के कार्य का आरम्भ हुआ। सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी अपने जीवन काल तक विद्या मन्दिर ट्रस्ट के स्वयं अध्यक्ष रहे तथा अपने वंशज की संतानो को आजीवन ट्रस्टी बनाया तथा ट्रस्ट की नियमावली में उन्हीं ट्रस्टी में से ट्रस्ट का अध्यक्ष व चेयरमैन बनाए जाने की व्यवस्था दिया। तत्पश्चात सन् की 1930 ई० में सेठ सागरमल जी ने विद्या मन्दिर स्कूल की इमारत व स्कूल के चारों तरफ की खाली जमीन को बोर्ड आफ ट्रस्टीज विद्या मन्दिर ट्रस्ट के हक में भूमि व मिल्कियत के स्वामी होने के नाते बज़रिया दस्तावेज़ इस प्रतिबन्ध के साथ सुपुर्द कर दिया कि स्कूल की इमारत व उसकी समस्त भूमि पर बोर्ड आफ ट्रस्टीज विद्या मन्दिर ट्रस्ट काबिज दखील रहेंगे तथा सेठ जी के स्वर्गवास हो जाने के उपरान्त उनके वंशज ट्रस्टीज का स्कूल पर ट्रस्ट के नियमानुसार ट्रस्ट की मिल्कियत के रूप में कब्जा दखल बना रहेगा और यही सिलसिला वंश दर वंश चलता रहेगा। सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी ने जो स्वयं विद्या मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष थे, अपने प्रबन्धकत्व में स्कूल का संचालन बड़ी ततपर्ता के साथ करते हुए स्कूल का समस्त व्ययभार स्वयं वहन किया और उन्होंने सन् 1934-35 में विद्या मन्दिर वर्नाक्यूलर स्कूल को हाई स्कूल की मान्यता प्राप्त कराया ततपश्चात सेठ जी अपने स्कूल के संस्थापक एवं अपने जीवन काल तक पहले तथा अन्तिम प्रबन्धक रहे। उन्होंने स्कूल में कृषि विषय से शिक्षण कार्य हेतु भी कृषि विषय की मान्यता प्राप्त किया। तत्पश्चात सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी ने बालक व बालिकाओं की शिक्षा के चतुर्दिक विकास व उन्नति के उददेश्य की पूर्ति के लिये अपने निजी सरमाया से मौजा निजामुद्दीन पुरा में 30.854 एकड़ तथा मौजा सहादत पुरा में 1.285 एकड़ कुल मिला कर 32.139 एकड़ यानी 55 बीघा जमीन भी अपने ही नाम (सेठ सागरमल खण्डेलवाल) से रजिस्टर्ड बैयनामा द्वारा क्रय किया | ताकि उक्त कय की गयी भूमि व उस पर निर्मित इमारतों की मिल्कियत के मालिक, काबिज दखील तथा लैण्डलार्ड सेठ सागरमल जी अपने जीवनकाल तक यथावत बने रहें और सेठजी के निधन के पश्चात सेठजी के वंशज में उनके सुपुत्र ही अपनी पैत्रिक सम्पत्ति के वरासतन स्वामी मालिक, काबिज दखील तथा लैण्डलाई रहें और यही वंशानुगत क्रम चलता रहे। तदोपरान्त राय बहादुर सेठ सागरमल जी ने अपने स्व० पिता की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से बोर्ड आफ ट्रस्टीज विद्या मन्दिर ट्रस्ट द्वारा गठित प्रबन्ध तंत्र द्वारा संचालित होने वाले विद्या मन्दिर वर्नाक्यूलर स्कूल का नाम बदल कर जीवन राम हाई स्कूल रखा। सन् 1950 ई0 में इन्टर की मान्यता भी राय बहादुर सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी ने अपने सतत प्रयास से प्राप्त किया। तत्पश्चात स्कूल का नाम बदल कर जीवन राम इन्टर कालेज रखा। राय बहादुर सेठ सागरमल खण्डेलवाल प्रबंधक जी का निधन सन् 1952 में हुआ। सेठजी के स्वर्गवास हो जाने के फलस्वरूप उक्त 32.139 एकड़ भूमि के कानूनी तौर पर वरासतन मालिक, काबिज व भूमिधर उनके दोनो सुपुत्र श्री गिरधर गोपाल जी व श्री काशी प्रसाद खण्डेलवाल जी हुए। सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी द्वारा अर्जित की गयी गौजा निजामुद्दीन पुरा की 30.854 एकड़ भूमि में अपनी पत्नी स्व० सोनी व अपने भाई स्व० भवानी प्रसाद जी की पत्नी स्व० धापा के संयुक्त नाम "सोनीधापा" के नाम से बालिका विद्यालय की स्थापना करने हेतु स्वामी जी द्वारा दिये गये आशिर्वाद रूपी सुझाव को अपने जीवन काल में साकार नहीं कर पाये थे, इसलिए स्वामी जी के उसी आशिर्वाद रूपी सुझाव को साकार बनाने की सेठ जी की प्रबल इच्छा की पूर्ति करने के उद्देश्य से सेठ जी के दोनों सुपुत्र स्व० गिर्धर गोपाल व स्व० काशी प्रसाद जी के द्वारा वरासत में प्राप्त हुई उक्त पैत्रिक भूमि में उनके अथक प्रयास से बालिकाओं की शिक्षा हेतु सन् 1964 ई0 में सोनीघापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज की नियमानुसार स्थापना किया गया और उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता जी सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी के द्वारा अर्जित की गयी भूमि, जिस पर सोनीघापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज स्थित है, को कालेज के नाम नियमानुसार हस्तगत कराकर तत्समय के सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाण पत्र प्राप्त किया। इस प्रकार सेठ सागरमल खण्डेलवालजी के सपनों को उनके दोनों सुपुत्रों ने साकार किया। यद्यपि सेठ सागरमल जी ने अपने जीवन काल में मौजा निजामुद्दीन पुरा की इसी भूमि के एक हिस्सा में सन् 1935 ई० में एक भव्य तथा विस्तृत छात्रावास का निर्माण कराया था, जो अन्यत्र अब भी सुलभ नहीं है। परन्तु सेठ जी के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उक्त सागर- छात्रावास में कोई विद्यार्थी निवास नहीं कर सका। उक्त छात्रावास अब भी जर जर की स्थिति में अपना अस्तित्व दृश्टिगोचर किये हुए है। सोनीधापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज मऊ के संस्थापक व पूर्व प्रबन्धक श्री काशी प्रसाद खण्डलेवाल जी ने कालेज का चतुर्दिक विकास कराया। उन्होंने अपने प्रबन्धकत्व में कालेज में सन् 1966 ई० में हाई स्कूल स्तर पर 1- हिन्दी 2- इतिहास 3- भूगोल, 4-नागरिक शास्त्र, 5- अर्थ शास्त्र, अंग्रेजी, 7-संस्कृत, 8-गणित, 9-कला, 10- संगीत, 11- गायन, 12-गृह विज्ञान विषयों की मान्यता प्राप्त कराया। ततपश्चात सन् 1976 ई० में उर्दू विषय की भी हाई स्कूल स्तर पर मान्यता प्राप्त कराया। सन् 1969 ई0 में इन्टरमिडिएट स्तर पर 1- हिन्दी 2- इतिहास, 3- भूगोल, 4-नागरिक शास्त्र, 5-अर्थ शास्त्र, 6-अंग्रेजी, संस्कृत, 8-कला, 9-संगीत, 10 मनो विज्ञान, 11-समाज तशास्त्र, 12- तर्क शास्त्र, 13- शिक्षा शास्त्र विषयों की मान्यता प्राप्त कराया जब कि उर्दू विषय की इन्टर स्तर तक मान्यता सन् 1978 ई0 में प्राप्त हुई। स्व० काशी प्रसाद जी अपने जीवन काल तक सोनीधापा खण्डेलवाल बालिका इन्टर कालेज के प्रबन्धक रहे और उनका स्वर्गवास सन् 1980 ई० में हुआ। उनके स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उनके सुपुत्र श्री विजय कुमार खण्डेलवाल जी को कमेटी ने नियमानुसार प्रबन्धक बनाया जो अपने जीवन काल तक प्रबन्धक रहे और उन्होंने सन् 1984 ई० में 48 पदों पर 34 कार्यरत शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के पद सृजन हेतु शासन से प्रमाण-पत्र जारी कराया जिस के अनुसार कोलज में 1-प्रधानाचार्या एक (1) 2 प्रवक्ता-नौ (9). 3- एल०टी० ग्रेड स०अ० छः (6) 4-सी०टी० ग्रेड स०अ०-ग्यारह (11) 5-प्राइमरी / बी०टी०सी० ग्रेड स०अ०- 7 (सात) 6- प्रधान लिपिक एक (1), 7-सहायक लिपिक-दो (2). 8- परिचारक -गयारह (11) कालेज में सरकारी वेतन भोगी शिक्षिकाएं व कर्मचारीगण कार्यरत हैं। समय के उलट फेर के साथ इस कालेज को भी झंझावट से गुजरना पड़ा। लेकिन सत्य की जीत होती है। सूर्य की किरणें कलुशता को घेर लेती हैं और वही हुआ सन् 1987 में मकालेज की ततकालीन प्रधानाचार्या शैलजा श्रीवास्तव शिक्षा माफियाओं के चगुल में बुरी तरह से फस गयी और उक्त तत्कालीन प्रधानाचार्या के गलत मनगढत बेबुनियाद व फर्जीवाड़े कार्यों से कालेज को निजात दिलाने के लिए कालेज के प्रबन्ध तंत्र को सन् 1992 ई० से मार्च 2013 तक रेक ट्रेसपासरों/ रैंक आउट साइडरों (बाहरी व्यक्तियों) से मुकदमा लड़ना पड़ा और माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से समस्त एक ट्रेसपासर्स / रैक आउट साइडर्स (बाहरी व्यक्तियों) को कॉलेज छोड़ना पड़ा। किन्तु बड़ा ही दुर्भागय रहा कि शैलजा श्रीवास्तव के इस कलंकित युग में कालेज के पूर्व अध्यक्ष श्री राज कुमार खण्डेलवाल जी का सन् 1994 में हार्ट अटेक हो गया। तदोपरान्त कालेज के पूर्व प्रबन्धक श्री विजय कुमार खण्डेलवाल जी का मुकदमा के दौरान ही सन् 2011 ई0 में हार्ट अटैक हो गया। इस प्रकार दोनों भाई राज कुमार व विजय कुमार अपने दादाश्री सागरमल की इच्छानुसार अपने स्व० पिता गिरधर गोपाल व काशी प्रसाद द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित व संचालित अपने इस कालेज का मुकदमा, जो माननीय उच्च न्यायालय में • विचाराधीन था. उसका अन्तिम निर्णय नहीं देख सके। तत्पश्चात स्वर्गीय राज कुमार खण्डेलवाल जी की पत्नी श्रीमती शकुन्तला खण्डेलवास देवी का (लेखिका) को पूर्व प्रबन्धक श्री विजय कुमार खण्डेलवाल जी की मृत्यु से रिक्त हुए प्रबन्धक के पद पर प्रबन्ध तंत्र ने नियमानुसार प्रबन्धक चयनित किया, जिन्होंने माननीय उच्च न्यायालय में मुकदमा दाखिल कर पांच पांच मुकदमा लगातार जीता और अन्तिम रूप से मुकदमा जीत कर नियमानुसार कालेज की प्रबन्धक बनी और 4 अप्रैल 2013 ई० से श्रीमती शकुन्तला प्रबन्धकत्व में कालेज के प्रबन्ध तंत्र का कालेज पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित हुआ जिसक • फलस्वरूप रैंक ट्रेस पासर्स / रैंक आउट साइडर (बाहरी व्यक्तियों) से कालेज को निजात प्राप्त हुई। तदोपरान्त श्रीमती शकुन्तला देवी के प्रबन्धकत्व में कालेज का सर्वांगीण विकास हो रहा है। वर्ष 2014-15 में कालेज में इन्टर की 99 छात्राएं प्रथम श्रेणी में पास हुयीं और 23 छात्राएं ससम्मान उत्तीर्ण हुर्थी तथा इन्टर का परिणाम शत प्रतिशत रहा है तथा यही हाल हाइ स्कूल की परीक्षा का भी रहा है। हाई स्कूल में वर्ष 2014-15 में 135 छात्राएं प्रथम श्रेणी में पास हुयी है और हाई स्कूल का भी सत प्रतिशत परिणाम रहा है। कालेज में श्रीमती शकुन्तला खण्डेलवाल प्रबन्धक द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के पश्चात कालेज में कम्प्यूटर शिक्षा हेतु अथक प्रयास किया गया. जिसमें सफलता प्राप्त हुई और कालेज में सरकार द्वारा 10 कम्प्यूटर की व्यवस्था की गयी जो कम्प्यूटर रूम में स्थापित होकर बालिकाओं की शिक्षा में चार चांद लगा रहा है। कॉलेज में व्यवसायिक शिक्षा हेतु कढ़ाई सिलाई पेन्टिंग आदि की शिक्षा देने के लिए। सरकारी मानदेय पर शिक्षिकाएं कार्यरत हैं जो बालिकाओ को व्यवसायिक शिक्षा दे रही हैं। कालेज की उन्नति से बालिकाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। कालेज में इन्टर तक विज्ञान वर्ग फ़िजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलोजी तथा गणित विषय की भी शिक्षा योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों / शिक्षिकाओं द्वारा दी जाती है तथा कालेज में विज्ञान वर्ग की प्रयोगशाला में नियमित रूप से बालिकाओं से प्रेक्टिकल कराया जाता है। कालेज के पशिचम सटे कालेज का खेल का मैदान क्रिड़ा स्थल है, जिसकी भूमि इस कालेज के संस्थापकगण श्री गिरधर गोपाल व श्री काशी प्रसाद जी की पैत्रिक सम्पत्ति है जो उनके स्व० पिता श्री सागरमल खण्डेलवाल जी द्वारा अपने नीजी सरमाया से अपने ही नाम (सेठ सागरमल खण्डेलवाल) से रजिस्टर्ड बैयनामा द्वारा अर्जित की गयी भुमियों में से ही है। इस प्रकार स्व० आरेनरी मजिस्ट्रेट सेठ राय बहादुर सागरमल खण्डेलवाल जी के वंशजों द्वारा अपने निजी / पत्रिक भूमि, जो वरासतन प्राप्त हुई है पर स्थापित यह बालिका कालेज पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर चतुर्दिक विकसित हो रहा है और ईश्वर से प्रार्थना है कि संस्था के बाइलाज के अनुसार यह बालिका कालेज स्वर्गीय श्री सेठ सागरमल खण्डेलवाल जी के वंशजो में ही वंश दर वंश रहते हुए संचालित होकर चतुर्दिक विकास करता रहे |

                                                                                                                                                                        स्व० श्री मती सोनी खण्डेलवाल 

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